हाल ही में, महाराष्ट्र पुलिस के एक निलंबित अधिकारी को मुंबई पुलिस आयुक्त ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 (2) (b) के तहत बिना विभागीय जांच के सेवा से बर्खास्त कर दिया।
लोक सेवकों के लिए प्राप्त संरक्षोपाय:
अनुच्छेद 311 (1): के अनुसार, किसी लोक सेवक को, उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा पदच्युत नहीं किया जाएगा या पद से नहीं हटाया जाएगा।
अनुच्छेद 311 (2): के अनुसार, किसी लोक सेवक को, उसके विरुद्ध आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिए बगैर उसे पदच्युत अथवा पद से नहीं हटाया जाएगा या ओहदे में अवनत नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 311 तहत संरक्षोपाय:
अनुच्छेद 311, का उद्देश्य लोक सेवकों के लिए एक सुरक्षा कवच प्रदान करना है। इसके अंतर्गत लोक सेवकों के लिए उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच के दौरान अपना पक्ष रखने हेतु अवसर दिए जाने का प्रावधान किया गया है, ताकि उन्हें मनमाने ढंग से सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सके।
अनुच्छेद 311 (2) (b) में इन संरक्षोपायों के अपवाद हेतु भी प्रावधान किये गए हैं।
इसमें कहा गया है, “जहाँ किसी व्यक्ति को पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्ति में अवनत करने के लिए सशक्त प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि किसी कारण से, जो उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाएगा, कि इस मामले में जाँच करना युक्तियुक्त रूप से साध्य नहीं है”।
क्या अनुच्छेद 311 (2) के तहत की गई बर्खास्तगी को सरकारी कर्मचारी द्वारा चुनौती दी जा सकती है?
हां, इन प्रावधानों के तहत बर्खास्त किए गए सरकारी कर्मचारी ‘राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण’ या ‘केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण’ (CAT) या न्यायालयों में अपील कर सकते हैं।
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