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पुनरीक्षण धारा 115 CPC

(1) उच्च न्यायालय किसी भी ऐसे मामले के अभिलेखो को मंगवा सकेगा जिसका ऐसे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ किसी न्यायालय ने विनिश्चय किया है और जिसकी कोई अपील भी नहीं होती है और यदि यह प्रतीत होता है कि - (क) ऐसे अधीनस्थ  न्यायालय ने ऐसी अधिकारिता का प्रयोग किया है जो उस में विधि द्वारा निहित नहीं है, अथवा ( ख) ऐसा अधीनस्थ न्यायालय ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने में असफल रहा है जो इस प्रकार निहित है, अथवा ( ग) ऐसे ऐसे अधीनस्थ  न्यायालय ने अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने में अवैध रूप से या तात्विक अनियमितता से कार्य किया है, तो उच्च न्यायालय उस मामले में ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे:  परंतु उच्च न्यायालय, किसी वाद या अन्य कार्रवाई के अनुक्रम में इस धारा के अधीन किए गए किसी आदेश में या कोई विवाद्यक विनिश्चित करने वाले किसी आदेश में तभी फेरफार करेगा या उसे उल्टेगा जब ऐसा आदेश यदि वह  पुनरीक्षण के लिए आवेदन करने वाले पक्षकार के पक्ष में किया गया होता तो वाद या अन्य कार्यवाही का अंतिम रूप से निपटारा कर देता।  ( 2) उच्च न्यायालय इस धारा के अधीन किसी ऐसे डिक्री या आदेश, जिसके व...

अनुच्छेद 311 (2) (b)

हाल ही में, महाराष्ट्र पुलिस के एक निलंबित अधिकारी को मुंबई पुलिस आयुक्त ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 (2) (b) के तहत बिना विभागीय जांच के सेवा से बर्खास्त कर दिया। लोक सेवकों के लिए प्राप्त संरक्षोपाय: अनुच्छेद 311 (1): के अनुसार, किसी लोक सेवक को, उसकी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा पदच्युत नहीं किया जाएगा या पद से नहीं हटाया जाएगा। अनुच्छेद 311 (2): के अनुसार, किसी लोक सेवक को, उसके विरुद्ध आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिए बगैर उसे पदच्युत अथवा पद से नहीं हटाया जाएगा या ओहदे में अवनत नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 311 तहत संरक्षोपाय: अनुच्छेद 311, का उद्देश्य लोक सेवकों के लिए एक सुरक्षा कवच प्रदान करना है। इसके अंतर्गत लोक सेवकों के लिए उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच के दौरान अपना पक्ष रखने हेतु अवसर दिए जाने का प्रावधान किया गया है, ताकि उन्हें मनमाने ढंग से सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सके। अनुच्छेद 311 (2) (b) में इन संरक्षोपायों के अपवाद हेतु भी प्रावधान किये गए हैं। इसमें कहा गया है, “जहाँ किसी व्यक्ति को पदच्युत करने या पद से ...