शहरीकरण: हाल के दशकों में भारत में तेज़ी से हुए शहरीकरण के कारण कई पर्यावरणीय समस्याएँ, जैसे- जल आपूर्ति, अपशिष्ट जल और इसका एक स्थान पर जमा होना साथ ही, इसके उपचार और निपटान जैसे समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। गंगा नदी के तट पर बसे कई शहरों एवं कस्बों के लोगों एवं प्रशासन ने शहर से निष्कासित होने वाले अपशिष्ट जल, सीवरेज आदि की समस्या के बारे में गंभीरता पूर्वक विचार नहीं किया है।
कृषि अपवाह और अनुचित कृषि प्रथाएँ: कृषि के दौरान अत्यधिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण मिट्टी में घुले हुए उर्वरक एवं कीटनाशक वर्षा-जल के साथ निकटतम जल निकायों में पहुॅंच जाते हैं।
जल निकासी की व्यवस्था: गंगा में न्यूनतम प्रवाह के अध्ययन पर जल संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, नदी के जल की गुणवत्ता पर उपचारित या अनुपचारित अपशिष्ट जल के निकास का प्रभाव नदी के प्रवाह पर निर्भर करता है। ज्ञातव्य है कि गंगा नदी जब मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है तो इसमें जल की मात्रा कम हो जाती है और इसका न्यूनतम प्रवाह बाधित होता है। उदाहरण के लिये, ऊपरी गंगा नहर और निचली गंगा नहर के कारण गंगा की निचली धाराएँ लगभग सूखने लगी हैं।
नदी किनारे शवों का अंतिम संस्कार एवं आंशिक रूप से जले हुए शव नदी में बहाना, धार्मिक त्योहारों के दौरान लोगों का बड़ी संख्या में नदी में स्नान करना पर्यावरणीय रूप से हानिकारक प्रथाएँ है। ये प्रथाएँ नदी के जल को प्रदूषित करती हैं और जल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
सीवेज उपचार हेतु नए बुनियादी ढाॅंचे को डिज़ाइन करने के लिये वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमानित मॉडल तैयार किये हैं।
सामुदायिक भागीदारी: गंगा नदी की सफाई हेतु सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये गंगा तट पर बसे शहरों, गाॅंवों एवं कस्बों में "गंगा प्रहरी" नामक नव-स्थापित समुदाय समूह के माध्यम से जागरुकता अभियान नियमित रूप से चलाया जा जा रहा है। उनके माध्यम से, सरकार "जल चेतना" को "जन चेतना" एवं पुनः इसे "जल आंदोलन" में बदल सकती है।
1. नदी में व नालों में कचरा डालने पर रोक।
2. मृत पशुओं को नदी मेें प्रवाहित करने पर रोक।
3. गंगा के किनारे शवों को लकड़ी से जलाने के स्थान पर विद्युत शवदाह गृहों को स्थापित करना।
4. नदियों में जमा गाद को (जब जल प्रवाह की मात्रा सीमित हो) प्रभावी रूप से हटाना तथा प्रवाह क्षेत्र को नियमित करना।
5. नदियों को प्रभावित करने वाले क्षेत्र में निर्माण की उन्नत विधियों का प्रयोग।
6. निर्माण के बाद कचरे को समुचित प्रबन्धन जिससे कि इस कचरे से नदियों पर दुष्प्रभाव न पड़े।
7. पूर्व निर्मित कंक्रीट ब्लॉक्स आदि का प्रयोग करके निर्माण क्षेत्र के कचरे को नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसी पद्धतियों के प्रयोग को बढ़ावा देना।
8. नदियों में प्राकृतिक रूप से जलीय जीवों का सन्तुलन बनाना जिससे कि पारिस्थितिकी के अनुसार प्राकृतिक सन्तुलन कायम रह सके। जैविक एवं पारिस्थितिक सन्तुलन बनाने की जरूरत है।
9. नदियों में प्राकृतिक प्रवाह क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों से होने वाली रुकावटों को दूर करना।
10. बरसात के दिनों में नदियों की ओर आने वाले जल प्रवाह क्षेत्र में उस स्थल के उपयुक्त वृक्षों व वनस्पतियों का उचित रोपण व प्रसार करना जिससे कि भूमि का कटाव कम-से-कम हो। भूमि का कटाव अपने साथ बहुत अधिक मिट्टी प्रवाहित करके लाता है व नदियों को एक प्रकार से चोक कर देता है। प्रवाह अवरुद्ध कर देता है। भूमि कटाव को रोकने से भू-संरक्षण के साथ ही जल संरक्षण भी निहित है, अतः ऐसा प्रयास बाढ़ से होने वाली विपदा का भी समाधान करेगा।
11. नदी प्रवाह के क्षेत्र में स्थानीय रूप से उचित पाये गए प्राकृतिक वृक्षों व वनस्पतियों का प्रसार व संरक्षण करना होगा।
12. नदी एवं जल संरक्षण की शिक्षा व सामाजिक चेतना जागृत करना हम सभी का कर्तव्य हो।
13. युकेलिप्टस श्रेणी के वृक्ष जो कि भूजल का अत्यधिक उपभोग करते हैं, उनको ऐसे क्षेत्रों में न लगाया जाये, जहाँ पर भूजल स्तर के नीचे जाने का खतरा है।
14. मुख्य रूप से प्रदूषण के मानकों का अनुपालन न करने वाली इकाइयों पर प्रभावी कार्यवाही त्वरित रूप से करना।
15. नहरों के माध्यम से नदियों के जल प्रवाह को सन्तुलित करने के लिये अध्ययन व इस पर एक दीर्घकालीन परियोजना बनाकर कार्य करना, यह कार्य पहले छोटे स्तर पर किया जाये।
16. बड़े बाँधों के साथ छोटे बाँधों का विकास किया जाये। लघु व सूक्ष्म जल परियोजनाओं के विकास से दूर-दराज के स्थानों पर भी बिजली उपलब्ध हो सकेगी तथा स्थानीय जनता की जंगल से ईंधन की लकड़ी लेने की मजबूरी दूर होगी, इससे वन संरक्षित रहेंगे तथा पारिस्थितिकी सन्तुलन बने रहने से वर्षा नियमित होगी व जल संरक्षण का यह दूरगामी प्रयास होगा, जोकि एक सार्थक कदम साबित होगा
गंगा नदी में प्रदूषण को कम करने के लिये उठाए गए अन्य कदम
सार्वजनिक नीति: वर्ष 2016 में सरकार ने राष्ट्रीय गंगा स्वच्छ मिशन (एनएमसीजी) को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करने के लिये अधिकृत करते हुए अधिसूचना जारी की।
एनएमसीजी ने नदी तटों पर खनन गतिविधियों को नियंत्रित करने, अतिक्रमण को रोकने और मूर्तियों के विसर्जन जैसी गतिविधियों को विनियमित करने के निर्देश भी जारी किये।
निष्कर्ष
भारत का संविधान, केंद्र और राज्य सरकारों को इसके नागरिकों के लिये स्वच्छ तथा स्वस्थ वातावरण एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने का प्रावधान करता है। (अनुच्छेद 48A, अनुच्छेद 51 (A) (g), अनुच्छेद 21)। साथ ही, सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की है कि स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
Comments
Post a Comment