भारतीय दंड संहिता की धारा 100 के अनुसार, शरीर की निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, पूर्ववर्ती धारा में वर्णित बंधनों के अधीन रहते हुए, हमलावर की स्वेच्छा पूर्वक मॄत्यु कारित करने या कोई अन्य क्षति कारित करने तक है, यदि वह अपराध, जिसके कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, एतस्मिनपश्चात निम्न प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात्: -
पहला-ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम मृत्यु होगा |
दूसरा-ऐसा हमला जिससे युक्तियुक्त रूप से आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे हमले का परिणाम घोर उपहति होगा;
तीसरा-बलात्संग करने के आशय से किया गया हमला ;
चौथा–प्रकृति-विरुद्ध काम-तृष्णा की तृप्ति के आशय से किया गया हमला ;
पांचवां-व्यपहरण या अपहरण करने के आशय से किया गया हमला ;
छठा–इस आशय से किया गया हमला कि किसी व्यक्ति का ऐसी परिस्थितियों में सदोष परिरोध किया जाए, जिनसे उसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि वह अपने को छुड़वाने के लिए लोक प्राधिकारियों की सहायता प्राप्त नहीं कर सकेगा ।
सातवां –अम्ल फेकने का कार्य या प्रयास करना जिससे यथोचित रूप से आशंका कारित हो कि अन्यथा ऐसे कृत्य का परिणाम घोर क्षति होगा। (आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013)।
बलबीर सिंह बनाम पंजाब राज्य AIR 1959 के वाद में हमलावर की मृत्यु को उचित ठहराने के लिए 4 परिस्थितियों की मौजूदगी साबित की जानी चाहिए:
1. यह पूरा घटनाक्रम अभियुक्तों जिसने प्राइवेट प्रतिरक्षा का इस्तेमाल किया है के द्वारा शुरू नहीं किया जाना चाहिए।
2. अभियुक्त के शरीर पर घोर उपहति या मृत्यु का वास्तविक खतरा होना चाहिए जिससे पता चले कि प्राइवेट प्रतिरक्षा में मृत्यु आवश्यक थी।
3. उस घटना से भाग निकलने का या बचने का अभियुक्त के पास कोई मौका नहीं था।
4. मृत्यु कारित करना उक्त परिस्थिति में आवश्यक था।
अन्य वाद
बूटा सिंह बनाम पंजाब राज्य
बदन सिंह बनाम राजस्थान राज्य
By Sonu Lakra
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